द्रव्य :- शुध्द पारद और शुध्द गन्धक १०-१० तोले लें |
विधि –
दोनों की कज्जली कर अतीस के क्वाथ में खरलकर गोली बनावें |
फिर सुर्य के ताप में सुखा मिटटी की नई हांडी में रख उपर तांबे की कटोरी ढक संधियो को उत्तम प्रकार से बन्द करें संधिस्थान सुखने पर हांडी को चूल्हे पर चढाकर अग्नि देवें | ताम्रपात्र पर शालिधान रखें लगभग १ घण्टे में धान फुटने लगने पर अग्नि देना बंद करें फिर यंत्र स्वांग शीतल होने, पर रस को निकालकर पीस लेवें इस रस को पर्पटी रस और नवज्वरादि रस भी कहते है | कितने ही ग्रन्थकांरो ने इसे त्रैलाक्यसुन्दर और ज्वरांकुश संज्ञा भी दी है |
मात्रा –
पहले अदरक के रस में २ से ३ रत्ती सैधानमक मिलाकर जिल्हा पर लेप लगा लेवें | फिर अदरक के रस में २ से ३ रत्ती पर्पटी रस मिलाकर सेवन करावें | और गरम कपडा अच्छी तरह ओढा देवें जिससे प्रस्वेद आकर ज्वर उतर जाता है |
उपयोग –
यह रस नुतन ज्वरों पर इनमें भी वातज्वर में विशेष हितकारक है ३ दिन तक इस रस का सेवन कराते रहने से फिर से ज्वर आने की षंका भी नही रहती |
वर्षा के जल में भीगने शीत लग जाते अपथ्य भोजन के सेवन या असमय पर भोजन करने से ज्वर आ गया हो, और सामान्य कब्ज हो अधिक कब्ज न हो तब इस रस के लाभ पहुॅंच जाता है | अपचन के हेतु से बार-बार थोडा- थोडा दस्त होता हो वह भी दूर हो जाता है |
वक्तव्य –
यदि इस रस के सेवन के साथ अतीस के 6 रत्ती चूर्ण को 5 तोले गरम जल में डाल ढंक दें| फिर जल निवाया रहने पर छान कर पिला देवें कपडे पर अतीस का जो चूर्ण रहा हो उसे दबाकर न निचोडे तो प्रस्वेद बहुत अच्छा आकर ज्वर उतर जाता है | सेन्द्रिय विष और कीटाणुओं का नाश करना हदय बल की वृध्दि करना आमाशय और अन्त्र को सबल बनाना ये सब कार्य पर्पटी रस और अतीस के संयोग से अधिक होते है अतीससह पर्पटीरस का सेवन कराने पर विषमज्वरा भी दूर हो जाता है |
सूचना –
ज्वर उतर जाने पर अन्न की इच्छा न हो तो नही देनो चाहिये क्षुधा लगी हो तो मटठे के साथ भात देवें |
अधिक कब्ज हो तो पहले आरग्वधादि क्वाथ का सेवन कराना चाहिये या उस क्वाथ के साथ पर्पटीरस देना चाहिये |
ज्वर में मलावरोध हो या तीव्र ज्वर हो तो यह रस नही देना चाहिये |