दरदसुधा भस्म
द्रव्य –
हिंगुल और कलई का चूना बिना बुझा 3-3 तोले |
विधि-
पहले हिंगुल को सेहुंड के दूध में 3 दिन खरल करें | फिर चूना मिला पुनः सेंहुड के दूध में 3 दिन मर्दन कर चक्रिका पेडें के समान एक टिकीया बनावें | इसे सूर्य के ताप में सुखा समान माप वाले घिसी हुई किनारे वाले दो शरावों के भीतर रख मुखमुद्रा करें | फिर दृढ कपडमिटटी कर एक गडढे में 2 सेर कण्डों की अग्नि देवें | स्वाअंग शीतल होने पर सम्पुट खोल टिकिया निकालकर पीस लेवें | यह भस्म मुलायम मैले सफेद रंग की होती है|
सूचना –
योग्य सम्पुट या कपड मिटटी न करने और अग्नि तेज लगने पर हिंगुल उड जाता है फिर भस्म का गुण कम को जाता है | एवं कम अग्नि लगने पर हिंगुल की लाली बनी रहती है | जिससे भस्म में उबाक वमन और विरेचन कराने का दोष रह जाता है | अतः सावधानीपूर्वक भस्म बनानी चाहिये|
मात्रा –
1 से 2 रत्ती मसाला लगे हुए नागरबेल के पान में दिन में 2 या 3 बार |
उपयोग –
यह भस्म सुकुमारी स्त्री पुरुष और बालकों के ज्वर को दुर करती है | इस भस्म के सेवन से किसी को जुलाब दो तीन दस्त लग जाती है | उदर-शुध्दी न हुई हो तो मात्रा 2 रत्ती देवें | और आवश्यकता पर 3-3 घण्टे बाद दिन में 3 बार देवें अपचनजनित ज्वर और षीतप्रधान ज्वर को दूर करने में यह हितावह है शीतज्वर में इस भस्म को शीत लगने के पहले दे दी जाये तो शीत लगना और ज्वर आना दोनों रुक जाते है | अमीरों के जीर्ण विषमज्वर को दूर करने के लिए यह भस्म कुछ दिनों तक देते रहना चाहिये यदि क्षयज्वर से मलावरोध हो तो 1-1 रत्ती दिन में 2 बार देते रहने से ज्वर शमन हो जाता है |
इसका शक्ती को बढाता है
सूचना –
नूतन ज्वर में रोगी को दूध पर रखें जल उबाल करके शीतल किया हुआ देवें औषध सेवन करने पर 2 घण्टे तक जल न देवें |