अभ्रक सत्व भस्म
द्रव्य – धान्याभ्रक 40 तोले सोहागा गूगल घी शहद चिरमी ये सब १०-१० तोले लें |
अभ्रक – सत्व-पातन
विधि -सबको कूटकर मिला लेवें फिर सटटा काजी या इमली का जल १० तोले डालकर छोटी-छोटी टिकीया बनाकर सुखावें पश्चात हांडी या वज्रमूशा में डाल कोष्टीक यन्त्र भटटी में रख कोयले की तेज अग्नि देकर द्रवीभूत करें, उसे तत्काल समीप ही साफ भुमि पर छिटका गोल कण भिन्न फैला दें | उसमें जो सत्व होता है वह ठण्डा होने के बाद छोटे-छोटे गोल कण वाला चपटे आकार वाला धातु जैसी कान्तिवाला बन जाता है |शेष काले रंग का कांच जैसा द्रव्य तथा किटट भाग अधिक मात्रा में मिलता है उसे कांच समझकर छोड दे |
सत्व संग्रह करने की विधि–
एक पक्के लोहे का कडा दो मुहॅं वाला जो बिजली व्दारा चुम्बकत्व प्राप्त किया हुआ हो, उस चुम्बक से किटट व काच के भीतर छोटे-छोटे कण, जो पृथक दिखते हैं अथवा काच को तोडने पर भीतर से निकलते है, उनको संग्रह कर लेना चाहिये | आवश्यकता हो तो न संगृहीत छोटे कणों को पुनः मुशा में रख तीव्राग्नि में धमाने और द्रव होने से भूमि पर पुर्ववत डालने से छोटे कणों की विशेष कान्ति वाली ढाली बन जाती है, यही असली सत्व है इसमें लोह द्रव्य विषेश प्रकार का होता है उसे जंग नही लगता और हथौडे की चोट से टूटकर चूर्ण हो जाता है, यही उत्तम सत्व समझा जाता है | इसी का शोधन मारण करके भस्म बनायी जाती है |
कोष्ठीक यन्त्र –
जमीन के उपर चबूतरा बना उस पर या बिल्कुल अलग १६ अंगुल उॅंची, एक हाथ लम्बी और एक हाथ चैडी कोठी बनवा लें | उसकी दो दिवारों के भीतर नीचे की ओर धमाने के लिए एक-एक छिद्र रखें | इस यन्त्र के भीतर सत्वपातन योग्य धातुपर्ण मूशा को रख चारों ओर पत्थर के कोयले से भरकर अग्नि लगा देवें फिर छिद्र में धोकनी से (मोटर वाले बिजली के २ पंखो से) खुब धमाने से धातु का सत्व काच के साथ द्रव हो जाता है | यदयपि अनेक ग्रन्थों में नीचे गडढा बनाकर सत्व पातन की विधि लिखी है | परन्तु अपरोक्त विधि और जमीन में सत्व संग्रह के लिये पात्र रखने की योजना नहीं करनी चाहिये कारण कि इस क्रिया से बहूत सा सत्व मिटटी में मिल जाता है |
वज्रमुशा –
कुम्हार के घडे बनाने की चिकनी मिटटी या बांबी की मिटटी ३ भाग सण गोबरी की रख घोडे की लीद भूसे की राख और सेलखडी या घीया भाटा १.१ भाग तथा लोहे का किट आधा भाग लें सबको मिला खूब कूट पीसकर मूशा कोश्ठी तैयार कर लेवें यह मूशा धातु आदि के सत्व पातन के लिये उपयोगी है आजकल बाजार मंेक्रूसीबल मूशा हर साइज की तैयार मिलती हैं | वे उत्तासहय होती है|
४० तोला अभ्रक में से सत्व निकालने में अग्नि और रखें या धमान के अनुरुप १ से ३ घन्टे लग जाती है | और सत्व २.४ तोले तक निकलता है शेष काच व किटट भाग अलग हो जाते है | इन्हें छोडंकर सत्व ग्रहण करें |
भस्म बनाने की विधि –
उपर्युक्त सत्व को कूटकर कपडछन चूर्ण करें, फिर १० वां हिस्सा हिंगुल मिला घीकुंवार के रस में १२ घण्टे खरलकर टिकिया बना धूप में सुखा दृढ शराव संपुटकर ५ सेर गोबरी की आंच देवे | इस तरह १०० या अधिक पुट देवें | सिंगरफ प्रत्येक पुट में बार-बार मिलाना चाहिये अन्त में एक या दो पुट अजा-रक्त के दिये जाये, तो क्षय नाशक गुणो की विषेश वृध्दि होती है | जब तक भस्म अच्छी मुलायम न हो तब तक पुट देना चाहिये कम पुटवाली भस्म क्वचित वातनाडियो को हानि पहुॅंचाती है |
उपयोग –
अभ्रकसत्व भस्म शीतल त्रिदोशघ्न और रसायन है इसमें विशेषतः पुरुशत्व लाने की शक्ति है इसके सेवन से तरुणावस्था की प्राप्ती होती है | और वीर्यस्तम्भन होता है पुरुशत्व प्राप्ती के लिये इसके समान अन्य औषध नहीं है | पीपल के साथ सेवन करने से राजयक्ष्मा शोष कास प्रमेह पाण्डु और जीर्ण रोग नष्ट होते है |
नोट –यह अभ्रसत्व भस्म १० सहस्त्र पुटी अभ्रक के तुल्य प्रभाकवकारी होती है |